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न्याय का संकल्प

अपनी 138 साल की यात्रा के हर चरण में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देश के सभी लोगों की समस्याओं, विकास, आकांक्षाओं और आशाओं एवं उम्मीदों के साथ खड़ी रही है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हमारा सबसे प्रमुख उद्देश्य आजादी हासिल करना था। तब कांग्रेस महात्मा गांधी और कई अन्य महान नेताओं की बुद्धिमत्ता और बलिदान से निर्देशित थी। आजादी के बाद से, कांग्रेस का धर्म सिद्धांत, डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर और उस समय के अन्य प्रबुद्ध लोगों द्वारा तैयार किया गया, भारत का संविधान है।

कांग्रेस दोहराती है कि भारत का संविधान हमेशा हमारे साथ रहेगा और हमारा एकमात्र मार्गदर्शक रहेगा।

न्याय का संकल्प<

स्वतंत्रता मिलने के बाद से कांग्रेस भारत की आशा और उम्मीद की किरण रही है। हमारी नीतियों ने मुख्य रूप से कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में तेजी से औद्योगीकरण को प्रोत्साहित किया, भारत को एक अकालग्रस्त देश से दुनिया भर के देशों को खाद्यान्न निर्यात करने वाले देश के रूप में बदला, एक वैश्विक सॉफ्टवेयर शक्ति-केंद्र (पावरहाउस) के रूप में भारत के उदय के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी नींव तैयार की और अनुसंधान एवं उच्च शिक्षा में उच्च श्रेणी के संस्थान बनाए, जिनसे निकले स्नातकों को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ श्रेणी में देखा जाता है। एक तरफ़ उदारीकरण और सुधारों के कारण लगातार कांग्रेस सरकारों द्वारा आर्थिक विकास में तेजी लाई गयी, वहीं दूसरी तरफ़ हमारी समाज कल्याणकारी नीतियों ने यह सुनिश्चित किया कि प्रत्येक नागरिक भारत के विकास की कहानी में हिस्सेदार हो। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए.) द्वारा तैयार किए गए समाज कल्याणकारी कार्यक्रम जैसे मनरेगा और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम ने भारत को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट (2008), वैश्विक आर्थिक मंदी (2013), नोटबंदी (2016) और कोविड-19 (2020) जैसे झटकों से उभरने में सक्षम बनाया है।

पांच वर्ष पहले, लोकसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस ने 54 पन्नों का घोषणापत्र प्रकाशित किया था। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के रिकॉर्ड के आधार पर, कांग्रेस ने लोगों को देश की राजनीति और अर्थव्यवस्था की अनिश्चित स्थिति और भाजपा/एनडीए सरकार को फिर से चुनने के खतरे के बारे में आगाह किया था। अफसोस की बात है कि देश की स्थिति के बारे में हमारा आकलन सही साबित हुआ है। पिछले पांच वर्षों में यह संकट और गहरे हो गए हैं। कांग्रेस ने अपने 2019 के घोषणापत्र में जो वादे और आश्वासन दिए थे, वे आज भी वैध हैं और कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। इसलिए, कांग्रेस अपने 2019 के घोषणापत्र में कही गई बातों को दोहराने से शुरुआत करती है और आपसे उस घोषणापत्र की बातों को इस घोषणापत्र के हिस्से के रूप में पढ़ने का आग्रह करती है।

कांग्रेस पहले दी गई अपनी चेतावनी को दोहराती है।

  • कांग्रेस ने कहा था, ‘युवाओं की नौकरियां चली गईं हैं‘ – आज बेरोज़गारी दर 8 प्रतिशत है और स्नातकों (ग्रेजुएट्स) के बीच बेरोजगारी दर 40 प्रतिशत से अधिक है।
  • कांग्रेस ने कहा था, ‘किसान आशा और विश्वास खो चुके हैं‘ - २०२१ में किसानों को तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए 16 महीने तक सड़कों पर उतरना पड़ा था। वे कानून किसानों को व्यावसायिक (कॉर्पोरेट) घरानों का गुलाम बना देते; किसान आज फिर से सड़कों पर हैं।
  • कांग्रेस ने कहा था, ‘व्यापारियों का व्यापार चौपट हो गया है‘ – जी.एस.टी. ने लाखों व्यापारियों से अत्यधिक टैक्स लूटा है और मुक्त-व्यापार (फ्री-ट्रेड) को बाधित कर दिया है।
  • कांग्रेस ने कहा था, ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों ने अपना विश्वास खो दिया है‘ - लाखों सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एम.एस.एम.ई.) बंद हो चुके हैं और अब नौकरिया पैदा करने में सक्षम नहीं हैं।
  • कांग्रेस ने कहा था, ‘महिलाओं में सुरक्षा की भावना खत्म हो गई है’ -वर्ष 2014 से 2022 के बीच महिलाओं के खिलाफ अपराध 31 फीसदी बढ़ गए हैं।
  • कांग्रेस ने कहा था ‘वंचित समुदाय अपने आर्थिक अधिकार खो चुके हैं’ - सरकार के विभिन्न विभागों में एवं अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पी.एस.यू.) में खाली पड़े पदों के कारण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग समुदाय के लोग नौकरियों से वंचित हो गए हैं। आदिवासियों को उनके वन अधिकारों से वंचित रखा गया है।
  • कांग्रेस ने कहा था, ‘सरकारी संस्थानों की स्वतंत्रता ख़त्म हो गई है’ - संवैधानिक निकायों सहित प्रत्येक संस्था को कमजोर कर दिया गया है और, कुछ मामलों में, सरकार के अधीन बनने के लिए मजबूर किया गया है।
न्याय का संकल्प<

हमारी सबसे बड़ी चिंता ’डर, धमकी और नफरत का मौजूदा माहौल’ है। पिछले पांच वर्षों से हर वर्ग के लोग भय में जी रहे हैं; लोगों को डराने-धमकाने के लिए कानूनों और जांच एजेंसियों को हथियार बनाया गया है; और अपनी कथनी व करनी के माध्यम से भाजपा और उसके सहयोगियों ने विभिन्न धार्मिक, भाषा और जाति समूहों के लोगों के बीच नफरत फैलाई है।

जिन खतरों के प्रति पहले हमने आगाह किया था, वे आज एक कड़वी वास्तविकता बन गए हैं।

अर्थव्यवस्था संकट में है। इस दावे के बावजूद कि भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है, हमारी विकास दर वर्ष 2004-14 की यू.पी.ए. अवधि के दौरान 6.7 प्रतिशत (नई श्रृंखला) के औसत से गिरकर अब वर्ष 2014-24 के दौरान औसतन 5.9 प्रतिशत हो गई है। अर्थव्यवस्था को दोगुना करने के लक्ष्य (जिसे यू.पी.ए. ने हासिल किया था) के विपरीत, वास्तविक रूप में भारत की जी.डी.पी. वर्ष 2013-14 में 100 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर वर्ष 2023-24 में केवल 173 लाख करोड़ रुपये हो जाएगी, जो लक्ष्य से बहुत कम है।

विकास दर में गिरावट का लोगों पर, खासकर गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। इसका असर प्रति व्यक्ति आय, वस्तुओं, सेवाओं की खपत और जीवन स्तर पर पड़ा है। घरेलू शुद्ध संपत्ति में गिरावट आई है, घरेलू देनदारियां बढ़ी हैं और परिवार अधिक क़र्ज़ में डूबे हैं।

अमीरों और गरीबों व मध्यम वर्ग के बीच असमानता तेजी से बढ़ी है, जिससे समानता, समता और सामाजिक एवं आर्थिक न्याय के लक्ष्यों को गहरा झटका लगा है। थॉमस पिकेटी सहित प्रमुख वैश्विक अर्थशास्त्रियों की “भारत में आय और धन असमानता, 1922-2023: अरबपति राज का उदय” शीर्षक वाली एक रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के तहत भारत ब्रिटिश राज की तुलना में अधिक असमान है। भारत के शीर्ष 1 प्रतिशत द्वारा अर्जित राष्ट्रीय आय का हिस्सा आज अपने उच्चतम ऐतिहासिक स्तर पर है और विश्व स्तर पर सबसे अधिक है। असमानता में वृद्धि विशेष रूप से 2014 और 2023 के बीच देखी गई है।

मनरेगा (MGNREGA) के तहत पंजीकृत एवं सक्रिय श्रमिकों की संख्या और 80 करोड़ लोगों की मुफ्त अनाज (5 किलो प्रति व्यक्ति प्रति माह) पर निर्भरता, व्यापक गरीबी के निश्चित संकेतक हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर 125 देशों में भारत का स्थान 111वां है।

आज सबसे गंभीर खतरा यह है कि भारत अब वास्तव में स्वतंत्र और लोकतांत्रिक गणराज्य नहीं रह पाएगा। भारत में लोकतंत्र खोखला होता जा रहा है और देश तेजी से एक-व्यक्ति और एक-दलीय तानाशाही बनने की ओर बढ़ रहा है। संघीय ढांचे पर हमला हो रहा है और केंद्र सरकार अधिकांश केंद्रीय राजस्व को अपने अधिकार में ले रही है, उन विषयों पर कानून पारित कर रही है जो अब तक राज्य सरकारों पर छोड़े गए थे, और अपनी वित्तीय और कार्यकारी शक्तियों का उपयोग कर, राज्यों का दर्जा नगर पालिकाओं के समान करती जा रही है। गैर-भाजपा शासित राज्यों के राज्यपालों को राज्यों की निर्वाचित सरकारों के कामकाज को ठप करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। गैर-भाजपा नेताओं को भाजपा की इच्छा के आगे झुकने के लिए मजबूर करने के लिए उनके खिलाफ झूठे मामले थोपने के लिए कानून और जांच एजेंसियों का इस्तेमाल किया जाता है। मीडिया को पुरस्कृत या भयभीत करके सरकार के प्रचार का माध्यम बनाया जा रहा है।

अपने आप से दो प्रश्न पूछें:

  1. क्या आज आपका जीवन 2014 की तुलना में बेहतर है?
  2. क्या आपका मन भयमुक्त है जैसा कि श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कल्पना की थी?

आपके सामने जो विकल्प 2019 में थे, वे आज भी मान्य है। विकल्प कांग्रेस या बीजेपी नहीं बल्कि उससे अधिक है। आपको चुनना है:

  • लोकतांत्रिक सरकार या सत्तावादी शासन के बीच
  • स्वतंत्रता या भय के बीच
  • सभी के लिए समृद्धि या कुछ लोगों के लिए धन के बीच
  • न्याय या अन्याय के बीच

वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव एक-दलीय तानाशाही पर लोकतंत्र, भय पर स्वतंत्रता, कुछ लोगों की समृद्धि पर सभी के लिए आर्थिक विकास और अन्याय पर न्याय को चुनने का अवसर प्रदान करेगा। कांग्रेस आपसे अपील करती है कि आप धर्म, भाषा और जाति से परे देखें, समझदारी से चुनाव करें और एक लोकतांत्रिक सरकार स्थापित करें जो भारत के सभी लोगों के लिए काम करेगी। हम आपसे “भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस” को वोट देने की अपील करते हैं।